चुनावी जनादेश झामुमो गठबंधन को मिला था, जिसने हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री चुना। अब वह कई गंभीर घोटालों में आरोपित हैं। क्या ऐसा होना चाहिए कि यदि उनकी गिरफ्तारी होती है, तो उनकी पत्नी कल्पना सोरेन को राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया जाए? क्या चुने हुए विधायकों को एक ऐसे चेहरे को अपना मुख्यमंत्री मान लेना चाहिए, जो विधायक भी नहीं है? चूंकि हेमंत सोरेन झामुमो के ‘आलाकमानी नेता’ हैं, लिहाजा जो उनका आदेश या आग्रह होगा, उसे स्वीकार कर लिया जाए? जनादेश सोरेन के नेतृत्व में झामुमो गठबंधन को मिला था। क्या वह जनादेश भी पत्नी, बेटा-बेटी अथवा वंश के किसी अन्य व्यक्ति को स्थानांतरित किया जा सकता है? आम आदमी के संदर्भ में लें, तो क्या एक व्यक्ति को मिली नौकरी को परिवार में ही स्थानांतरित किया जा सकता है? क्या आप कह सकते हैं कि मैं अपना नियुक्ति-पत्र अपने परिजन को सौंप रहा हूं, कल से वही काम पर आएगा? आपकी नौकरी तुरंत खारिज हो जाएगी। दरअसल ये सवाल हमारे संविधान और लोकतंत्र के संदर्भ में बेहद गंभीर हैं और हमारी व्यवस्था पर ही सवाल करते हैं। संविधान में व्यवस्था की गई कि बहुमत वाले पक्ष के विधायक अपना नेता चुनेंगे। राज्यपाल उस व्यक्ति को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाएंगे। ऐसा ही संसद में सांसद अपना प्रधानमंत्री चुनते हैं। चूंकि हेमंत सोरेन पर घोटालों के गंभीर आरोप हैं और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) उनकी जांच कर रहा है। वह मुख्यमंत्री को गिरफ्तार करे या पूछताछ कर आरोप-पत्र तैयार कर अदालत में दाखिल करे, यह ईडी अथवा किसी भी जांच एजेंसी का विशेषाधिकार है। इधर के दौर में जब चारा घोटाले में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव को जेल भेजा गया था, तो उन्होंने पार्टी विधायकों से अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री चुनवा दिया था।
राबड़ी विधायक भी नहीं थीं और प्रशासनिक दृष्टि से भी निरक्षर थीं, फिर भी वह करीब 8 साल तक मुख्यमंत्री के पद पर रहीं। पार्टी लोकतंत्र और संविधान पर इससे क्रूर मजाक नहीं हो सकता। काफी पुरानी बात हो गई, जब देवीलाल को केंद्र में उपप्रधानमंत्री बनाया गया था, तो उनके ज्येष्ठ पुत्र ओमप्रकाश चौटाला को हरियाणा का मुख्यमंत्री बना दिया गया था। उनके चुनाव को लेकर उस दौर में कई ‘महम’ हुए। प्रधानमंत्री रहते हुए इंदिरा गांधी की हत्या की गई, तो तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने राजीव गांधी को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिला दी थी। वह सांसद भी नहीं थे। हालांकि कुछ माह बाद लोकसभा चुनाव हुए, तो राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने 414 सीटें जीतीं। बहरहाल हेमंत सोरेन के संदर्भ में उनकी पत्नी को मुख्यमंत्री बनाया गया, तो वह जनादेश का एक और वंशवाद होगा। सवाल यह है कि पार्टी के भीतर किसी अन्य वरिष्ठ विधायक को मुख्यमंत्री क्यों नहीं चुना जाना चाहिए? मुख्यमंत्री रहते हेमंत सोरेन जिस तरह 41 घंटे ‘लापता’ रहे। राज्यपाल और शीर्ष नौकरशाहों और पुलिस अधिकारियों को उनका कोई सुराग नहीं था।
सुरक्षा एजेंसियों के पसीने छूट गए कि आखिर मुख्यमंत्री कहां गए? रांची से दिल्ली, दिल्ली से कोलकाता तक चार्टर विमान और फिर सडक़ मार्ग से रांची तक लौटना३मुख्यमंत्री को इसकी जरूरत क्या थी? यदि उन्हें कोई निजी काम था, तब भी सुरक्षा-काफिला मुख्यमंत्री के संग चलना चाहिए था। सवाल मुख्यमंत्री की सुरक्षा का है, जो राज्य के सर्वाेच्च कार्यकारी संवैधानिक चेहरा हैं। ‘लापता’ होने पर माना जा सकता है कि दाल में बहुत कुछ काला है। ईडी उन्हें दिल्ली में ही गिरफ्तार कर सकती थी। मुख्यमंत्री के दिल्ली आवास से 36.34 लाख रुपए, बीएमडब्ल्यू एसयूवी कार और घोटालों से जुड़े कुछ दस्तावेजी कागजात ईडी ने बरामद किए हैं। बहरहाल यह ईडी जांच करेगी, लेकिन हमारा सरोकार जनादेश के वंशवाद से है, जिस पर हमने कुछ चिंतित सवाल उठाए हैं।