
चंडीगढ़।शहर के कई मुद्दें है जो कि पिछले 15 से 20 साल से लंबिंत है। यह मुद्दें लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार तय होने के बाद प्रचार के दौरान एक बार फिर से गरमाएंगे। इन मुद्दों को न तो कांग्रेस और न ही भाजपा अपने कार्यकाल में सुलझा पाई है।
इन मुद्दों के न सुलझने के लिए कांग्रेस और भाजपा एक दूसरे को जिम्मेवार ठहरा रही है। एक बार फिर से राजनीतिक दल अपने घोषणा पत्र में इन मुद्दों को शामिल करने जा रहा है। जबकि यह मुद्दें शहर के हर वर्ग से जुड़े हुए हैं।
प्रशासन ने अधिकतर मुद्दों की गेंद केंद्र के पाले में फेंकी
हाउसिंग इंप्लाइज स्कीम, लाल डोरे को बढ़ाना, हाउसिंग बोर्ड के मकानों के जरूरत के अनुसार किए गए बदलाव को नियमित करना, शेयर वाइज प्रापर्टी का पंजीकरण रूकने के अलावा व्यापारियों के कई मुद्दें है। जिन पर शहरवासी चुनाव प्रचार के दौरान राजनीतिक दलों से सवाल जवाब करेंगे। प्रशासन अधिकतर मुद्दों की गेंद केंद्र सरकार के पाले में फेंकते हुए अपने पल्ला झाड़ लेता है। इस बार इन मुद्दों पर भाजपा को घेरने के लिए कांग्रेस को आम आदमी पाटी का भी साथ मिलेगा।
हरियाणा और पंजाब सरकार ने सुलझाया ये मुद्दा
चंडीगढ़ केंद्रीय प्रशासित राज्य होने के कारण सीधे तौर पर गृह मंत्रालय के अंतगर्त आता है। जबकि नेताओं और लोगों का कहना है कि अगर यहां पर विधानसभा होती तो राज्य की तरह मामले यहां पर ही सुलझा लिए जाते हैं। व्यापारियों के कई मुद्दें ऐसे हैं जिनमें लीज टू फ्री होल्ड, वैट के पुराने मामले निपटाने के अलावा शहर की पुनार्वास कॉलोनियों के मकानों का मालिकाना हक का मुद्दा हरियाणा और पंजाब सरकार ने अपने स्तर पर ही सुलझा लिया है जबकि शहर में इन मुद्दों पर अभी भी राजनीति हो रही है और लोगों की परेशानी बढ़ रही है।
कई मुद्दें सुलझाने के लिए प्रस्ताव यूटी प्रशासन की ओर से गृह मंत्रालय को भेजे गए हैं। जो कि वहां पर ही पड़े हुए हैं। कांग्रेस और भाजपा दोनो ही इन मुद्दों को भुनाकर लोगों से वोट मांगेगी।दोनो राजनीतिक दलों को अपने अपने कार्यकाल में मुद्दें न सुलझने के कारण चुनौती का सामना भी करना होगा।
इन मुद्दें के सुलझने का शहरवासियों को है इंतजार
- लाल डोरे के बाहर बने निर्माण को नियमित करने का मामला हर चुनाव में उछलता है। यह शहर का 20 साल पुराना मुद्दा है। लाल डोरे के बाहर बने मकानों को प्रशासन अवैध कब्जा मानता है। सभी गांव नगर निगम में शामिल होने के बावजूद इस मामले पर समाधान नहीं हुआ।
- शहर की पुनार्वास कालोनियों में 80 फीसद से ज्यादा मकान ऐसे है जिसमे लोगों के पास मालिकाना हक नहीं है। जबकि प्रशासन ने कालाेनियों का सर्वे भी करवाया है।
- 62 हजार हाउसिंग बोर्ड के मकानों में किए गए जरूरत के अनुसार किए गए बदलाव(नीड बेसिस चेजिंज) को वन टाइम राहत देने की मांग लोग कई सालों से कर रहे हैं। प्रशासन 90 फीसद मकानों में अतिक्रमण मानता है।
- शहर के युवाओं को डोमिसाइल होने का फायदा नहीं मिल रहा है। इसलिए युवाओं को यहां के सरकारी विभागों में नौकरी की प्राथमिकता नहीं मिलती है जबकि पंजाब व हरियाणा के युवाओं को अपने राज्य में नौकरी लेने पर निवास प्रमाणपत्र का फायदा मिलता है। वैसे भी शहर में सरकारी नौकरियों के ज्यादा अवसर नहीं है। ऐसे में शहर का युवा दूसरे राज्यों में या विदेशों में पलायन कर रहा है।
- व्यापारियों के कई मुद्दें है जिनका लंबे समय से हल नहीं निकल पा रहा है। ऐसे में इस चुनाव में भी शहर के बूथों में एक अतिरिक्त मंजिल का निर्माण के अलावा जो वायलेशन होने पर 500 रुपये स्केयर फीट के हिसाब से जुर्माना लगाने के नोटिस भेजे जा रहे हैं उन्हें खारिज करना अहम मुद्दा रहेगा।
- उद्योगपति पर लीज टू फ्री होल्ड की मांग कर रहे हैं। उन्हें कई दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है जिस कारण कई उद्योगपति पंचकूला और मोहाली में शिफ्ट कर चुके हैं। प्रशासन अभी तक स्टार्टअप नीति की अधिसूचना जारी नहीं कर पाया है।
- इस समय शहर के 3950 कर्मचारियों का परिवार पिछले 15 साल से अपनी हाउसिंग स्कीम के तहत फ्लैट का इंतजार कर रहा है। अब यह मामला पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट में विचाराधीन है। जिस पर हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा हुआ है।